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‘राजनीति में धर्म का हस्तक्षेप’ : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद,

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म प्रतापगढ़ के पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में 15 अगस्त 1969 को हुआ। इनके पिता पंडित राम सुमेर पांडेय और माता अनारा देवी अब इस दुनिया में नहीं हैं। इनका मूल नाम उमाशंकर है। इनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई। उसके बाद वह परिवार की सहमति पर नौ साल की अवस्था में गुजरात जाकर धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी रामचैतन्य के सानिध्य में गुरुकुल में संस्कृत शिक्षा ग्रहण करने लगे। ; बड़े भाई और भतीजा भी हैं कथावाचक:

बाद में स्वामी स्वरूपानंद के सानिध्य में आने के बाद उनके ही साथ सनातन धर्म के संवर्धन में लग गए। पट्टी के ब्राह्मणपुर में रह रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बड़े भाई गिरिजा शंकर पांडेय कथावाचक हैं। गिरिजा शंकर के पुत्र जयराम पांडेय समेत अन्य भी भागवत व राम कथा कहते हैं। परिवार के लोगों ने दैनिक जागरण को बताया कि उमा शंकर शुरू से ही धर्मिक कार्यों में रुचि लिया करते थे। उनकी छह बहने हैं।

अविमुक्तेश्वरानंद जब से घर से गए, दोबारा यहां कदम नहीं रखा। वह अयोध्या से प्रयागराज जाते समय ग्रामीणों के अनुरोध के बाद भी अपने गांव नहीं गए। हाईवे पर ही लोगों से भेंट करते चले जाते रहे। जब वह स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के रूप में प्रख्यात होने लगे तो परिवार के साथ प्रतापगढ़ ही नहीं अपने प्रदेश व देश का गौरव बढ़ा। उनके उत्तराधिकारी बनने पर गांव व घर के लोग प्रसन्नता से आनंदित हो गए।

छात्र राजनीति में भी वे काफी सक्रिय रहे?

जानकारी के मुताबिक, सोमवार को शिवसायुज्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के पार्थिव शरीर के समक्ष दोनों के नाम की घोषणा की गई. ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य घोषित स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बनारस से गहरा नाता रहा है. उन्होंने काशी के केदारखंड में रहकर संस्कृत विद्या का अध्ययन किया है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है. इस दौरान छात्र राजनीति में भी वे काफी सक्रिय रहे हैं.

 

ब्रह्मचारी रामचैतन्य के साथ काशी चले आए?

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य हैं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का मूलनाम उमाशंकर है. प्रतापगढ़ में प्राथमिक शिक्षा के बाद वे गुजरात चले गए थे. धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य पूज्य ब्रह्मचारी श्री रामचैतन्य जी के सान्निध्य और प्रेरणा से संस्कृत शिक्षा आरंभ हुई. स्वामी करपात्री जी के अस्वस्थ होने पर वह ब्रह्मचारी रामचैतन्य के साथ काशी चले आए.

तबसे दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद कहा जाने लगा?

इसके बाद वे स्वामी करपात्री जी के ब्रह्मलीन होने तक उन्हीं की सेवा में रहे. वहीं पर इन्हें पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निरंजन-देवतीर्थ और ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का दर्शन एवं सान्निध्य मिला. दीक्षा के बाद इनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया. इसके बाद वाराणसी में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने दंडी दीक्षा दीक्षा दी. इसके बाद इन्हें दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद कहा जाने लगा. वे अभी उत्तराखंड स्थित बद्रिकाश्रम में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में ज्योतिष्पीठ का कार्य संभाल रहे हैं.

साल 2024 का शुरुआती महीना. माने कि जनवरी. देश भर में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का माहौल बना हुआ था. सुर्खियां बन रही थीं. इस मसले पर राजनीतिक बयानबाजी ने भी ठीक-ठीक जगह बना ली थी. 22 जनवरी को समारोह होना था. लेकिन इसके कुछ दिन पहले ही सुर्खियों का फ्लो टूटा. देश के एक ‘बड़े धर्मगुरु’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कड़ी आलोचना की. वो भी राम मंदिर के मामले में. इस समारोह को लेकर मोदी सरकार पर कई सवाल उठाए. उन्होंने इसका खुला विरोध किया.

इन्हीं ‘बड़े धर्मगुरु’ ने लंबे-लंबे इंटरव्यू दिए. और हर इंटरव्यू में उनके निशाने पर थे- PM मोदी. उन्होंने पूरे देश का ध्यान खींचा. तब से ही सोशल मीडिया के एल्गोरिद्म ने उन्हें पहचानना शुरु कर दिया. इनका नाम है- अविमुक्तेश्वरानंद (Avimukteshwaranand). जिनके ‘शंकराचार्य’ बनने पर विवाद है.

अब थोड़ा फास्ट फॉरवर्ड करते हैं. साल 2024 का जुलाई महीना. अविमुक्तेश्वरानंद को अब सोशल मीडिया के एल्गोरिद्म ने ठीक-ठीक अपना लिया है. इंस्टाग्राम पर उनकी रील्स तैरने लगी हैं. इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर लोग उनसे धर्म से जुड़े सवाल पूछते हैं. और वो सक्रियता से निरंतर उनका जवाब भी देते हैं. कुल मिलाकर, अविमुक्तेश्वरानंद अब चर्चा में रहने लगे हैं. अब बात एक खास मौके की, जहां उनका सामना होता है- PM नरेंद्र मोदी से.

देश के बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी की शादी का मौका था. मुंबई के ग्लोबल जियो कन्वेंशन सेंटर में इसका आयोजन किया गया था. यहां अविमुक्तेश्वरानंद का सामना हुआ PM मोदी से. इसके बाद सब लोग यही जानना चाहते थे कि आखिर दोनों के बीच क्या बात हुई? पत्रकारों ने इस बारे में अविमुक्तेश्वरानंद से सवाल किया. उनका जवाब था,

“वो (PM मोदी) हमारे पास आए थे. उन्होंने प्रणाम किया. हमारा नियम है, हमलोग आशीर्वाद देते हैं. हमारे पास जो लोग आते हैं, उनको आशीर्वाद देते हैं. नरेंद्र मोदी हमारे दुश्मन नहीं हैं. हम उनके हितैषी हैं. सदैव उनके हित की बात करते हैं. जब उनसे कोई गलती हो जाती है, तब भी उनसे कहते हैं कि तुमसे ये गलती हो रही है.”

‘राजनीति में धर्म का हस्तक्षेप’
अविमुक्तेश्वरानंद के बारे में कहा गया कि वो राजनीति में हस्तक्षेप कर रहे हैं. कई मौकों पर उन्होंने राजीतिक बयानबाजी की है. इस बात को खुद अविमुक्तेश्वरानंद भी मानते हैं. और इस मसले पर बहुत ही स्पष्ट जवाब देते हैं,“हम संन्यासी हैं. हमको पॉलिटिकल बयान नहीं देना चाहिए. बिल्कुल सही है. हम इसी सिद्धांत के हैं. लेकिन पॉलिटिकल वाले (नेता) को भी तो धर्म के मामले में आगे नहीं बढ़ना चाहिए. पॉलिटिकल वाला धर्म के मामले में आगे बढ़े तो आपलोग उसका समर्थन करते हो.”

“हम संन्यासी हैं. हमको पॉलिटिकल बयान नहीं देना चाहिए. बिल्कुल सही है. हम इसी सिद्धांत के हैं. लेकिन पॉलिटिकल वाले (नेता) को भी तो धर्म के मामले में आगे नहीं बढ़ना चाहिए. पॉलिटिकल वाला धर्म के मामले में आगे बढ़े तो आपलोग उसका समर्थन करते हो.”

इस जवाब में भी वो PM मोदी पर निशाना साधते हैं. जाहिर है कि नाराजगी राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ी थी. उन्होंने आगे कहा,

“PM मोदी अगर मंदिर में आकर धर्म स्थापना करने लगे तो आपलोग एकदम लाइव दिखाओ. और अगर शंकराचार्य मंदिर या धर्म के बारे में कुछ बोलें तो कहो कि संन्यासी को ऐसा नहीं करना चाहिए. राजनीति के लोग धर्म में हस्तक्षेप करना बंद करें. हम गांरटी दे रहे हैं, राजनीति पर बोलना बंद कर देंगे. लेकिन आप हमारे (हिंदू) धर्म में लगातार हस्तक्षेप कर रहे हो. क्या राजनेताओं को धर्म का पालन नहीं करना चाहिए? क्या हमको विश्वासघात के बारे में लोगों को सचेत नहीं करना चाहिए.”

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