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महाभारत के कर्ण का कवच-कुंडल जो बन गया था उनकी ही मौत का कारण,आज भी इस जगह पर है सुरक्षित 1

नई दिल्ली। जब भी युद्ध की बात किसी की जुंबा पर आती है। तो दुनिया का सबसे ज्यादा समय तक चलने वाला युद्ध महाभारत रहा था जिसमें दो भाइयों के बीच की जंग ऐसी हुई थी कि हस्तिनापुर का एक वंश इसमें पूरी तरह धराशाई हो गया था। इस युद्ध में कौरव का साथ दे रहे शक्तिशाली कर्ण को लोग आज भी याद करते है। जिसकी इस युद्ध में सराहनीय भूमिका थी।  महाभारत काल के प्रमुख पात्रों में कर्ण शक्ति शाली होने के साथ महादानी भी थे। उनके शरीर में जन्म से ही ऐसा कवच और कुंडल लगा हुआ था जिससे उन्हें की परास्त नही कर सकता था।

बता दें, कि यह शक्ति शाली कर्ण माता कुंती और सूर्य के अंश से पैदा हुए थे। राजाओं के घर में पैदा होने के बाद भी कर्ण कुंती पुत्र के नाम से नही बल्कि सूतपुत्र के नाम से जाने जाते थे। इस सूतपुत्र के ऊपर भलेही मां बाप की छाया नही थी लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए उनके पास जन्म से ही एक खास कवच और कुंडल था जिसे पहनकर उन्हें दुनिया की कोई भी ताकत परास्त नहीं कर सकती थी।

इस युद्ध में इस कवच कुंडल का भी काफी योगदान रहा है। जिसके लिए खुद कृष्ण ने इसे पाने के लिए साजिश रची थी जिसके बाद ही कर्ण का वध अर्जुन के हाथों किया गया था। ये कवच कुंडल आज भी एक ऐसी जगह पर सुरक्षित रखे हे है जिसे पाने के लिए जाने वालों के मौत निश्चित है। कहा जाता हैं कि जो भी इस स्थान पर जाकर इसे पा लेता है वो इंसान सर्वशक्तिमान बन सकता है।

मां कुंती ने छीना था कवच और कुंडल

कवच और कुंडल की सच्चाई के बारे में बात करें तो जब कुंती की शादी पांडु के साथ हुई थी, उससे पहले ही  कुंती के गर्भ से कर्ण पैदा हो चुके थे। कर्ण भी महाभारत का हिस्सा बने थे लेकिन उन्होने कौरवों का साथ दिया था। दानवीर क्रण महीदानी थे उनके पास जो आता था खाली हाथ नही जाता था। और यही दान भी उनकी मौत का कारण बन गया।

महाभारत के युद्ध मे हर कोई जानता था कि जब तक कौरवों के पास कर्ण का साथ है तब तक इस युद्ध को जीतना मुश्किल है। और किसी के पास ऐसी शक्ति नही थी जो कर्ण को मार सके फिर चाहे स्वयं नारायण ही क्यो ना हो। जिसके लिए कर्ण को मारने के लिए मां कुंती को बीच में आना पड़ा। अपने बेटे अर्जुन का साथ देने के लिए कुंती ने छल से उनका कवच और कुंडल छीन लिया।

छल के साथ मांगा कवच और कुंडल

कवच और कुंडल को पाने के लिए पहले योजना बनाई गई कि जब कर्ण सूर्य देव की आराधना कर रहे होंगे, तब देवराज इंद्र उनके पास जाकर उनसे उनका कवच और कुंडल मांग लेंते है। देवराज इंद्र ने वहां साधू की वेषभूषा में पहुंचकर उनसे उनका कवच मांग लिया।  और कर्ण भी अपने वचनों से पीछे नहीं हटे। और खुशी खुशी कर्ण ने अपनी कवच कुंडल यह कहते हे दे दिया कि इस युद्ध में पांडव में से कोई एक भी बेटा मरे लेकिन आपके पास पांच बेटे हमेशा बने रहेगें। फिर कृष्ण के इशारे पर अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया। और कवच-कुंडल ना होने के कारण कर्ण की मृत्यु हो गई।

सूर्य देव और समुद्र देव कर रहे हैं रक्षा

कहा जाता है कि जब देवराज इंद्र कर्ण के कवच और कुंडल को लेकर स्वर्ग जाने लगें तो उन्हे अंदर नही जाने दिया, क्योकि उन्होने इस छल से प्रापप्त किया था। जिसके बाद उन्होंने इसे समुद्र के किनारे छिपा दिया, जिस चंद्र देव ने देख लियाष जब वो  कवच व कुंडल को चुराकर भागने लगे। जब समुद्र देव ने उन्हें रोक लिया और तब से समुद्र और सूर्य देव इस कवच और कुंडल की रक्षा कर रहे हैं। आज भी यह कवच और कुंडल को पुरी के पास कोणार्क में छिपाया गया है जिसके पास कोई भी यहां तक नहीं पहुंच सकता है।


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