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40,000 रुपए से बिज़नेस की शुरुआत, कुछ ही सालों में करोड़पति 1

दिल्ली-एनसीआर में कई ऐसे चौराहे हैं जहां सुबह-सुबह बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर जमा हो जाते हैं, उम्मीदों के साथ कि उन्हें किसी न किसी काम पर लगा लिया जाएगा। ये मजदूर अपने परिवारों की आजीविका के लिए रोज़ाना सूरज निकलते ही अपने घरों से निकल पड़ते हैं और शाम ढलने तक काम की तलाश में चौराहों पर खड़े रहते हैं।

लेकिन इस इंतजार का फल हमेशा मीठा नहीं होता। कई बार उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। ऐसे कई मौके आते हैं जब मजदूरों को लगातार 5-6 दिनों तक कोई काम नहीं मिलता, जिससे उनके परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता है।

इन मजदूरों की इसी कठिनाई को देखकर बिहार के एक लड़के, चंद्रशेखर मंडल, ने कुछ ऐसा करने की ठानी जिससे इनकी जिंदगी में सुधार आ सके। चंद्रशेखर, जो बिहार के दरभंगा जिले के एक छोटे से गांव आमी के रहने वाले हैं, ने दिल्ली में शिक्षा प्राप्त की और 2020 में एक बैंकिंग कंपनी में काम करना शुरू किया। एक दिन जब वे मयूर विहार में अपने ऑफिस की बालकनी में खड़े थे, तो उन्होंने सामने के लेबर चौक पर काम की तलाश में बैठे मजदूरों की मुश्किलें देखीं।

सूरज उगते ही लग जाती है मजदूरों की भीड़

चंद्रशेखर ने देखा कि ये मजदूर रोज़ाना सूरज उगते ही चौराहों पर काम की उम्मीद में जमा हो जाते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। कई मजदूर ऐसे भी होते हैं जिन्हें कई दिनों तक काम नहीं मिलता, जिससे उनका जीवन यापन मुश्किल हो जाता है। मजदूरों की इस समस्या ने चंद्रशेखर को बहुत प्रभावित किया और उन्होंने कुछ करने का निर्णय लिया।

मजदूरों के लिए तैयार किया प्लेटफॉर्म

चंद्रशेखर ने ‘डिजिटल लेबर चौक’ नामक एक प्लेटफॉर्म तैयार किया, जिसका उद्देश्य दिहाड़ी मजदूरों को उनके काम के लिए एक डिजिटल मंच प्रदान करना था। इस प्लेटफॉर्म की मदद से मजदूरों को अब घर बैठे ही काम मिलने लगा। डिजिटल लेबर चौक के जरिए मजदूर अपनी प्रोफाइल बना सकते हैं, जिसमें उनकी विशेषज्ञता और अनुभव का विवरण होता है। वहीं, नियोक्ता भी अपनी जरूरतों के हिसाब से मजदूरों की प्रोफाइल देखकर उन्हें काम पर रख सकते हैं।

इस प्लेटफॉर्म का असर बेहद सकारात्मक रहा। जहां पहले मजदूरों को चौराहों पर घंटों इंतजार करना पड़ता था, वहीं अब उन्हें आसानी से रोजगार मिलने लगा है। चंद्रशेखर की इस पहल ने न केवल मजदूरों की जिंदगी को आसान बनाया, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बना दिया। यह कहानी एक व्यक्ति की सोच और समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी की मिसाल है, जिसने तकनीक का उपयोग करके मजदूरों की समस्याओं का समाधान खोजा।


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