नई दिल्ली। देश के वीरों की शहादत के बाद ना केवल पत्नि अकेली हो जाती है बल्कि परिवार के अन्य सद्स्यों को भी बड़ी पीड़ा से गुजरना पड़ता है। बेटे की जुदाई का बोझ लिए हर माता पिता ताउम्र दुख से बिता देता देता है। ऐसा ही कुछ कैप्टन अंशुमान के परिवार को झेलना पड़ रहा है।
19 जुलाई 2023 की वो काली रात जब सियाचिन में भारतीय सेना के एक बंकर में आग लग गई थी। और इस आग की लपट में फंसे सैनिको बाहर लाने में कैप्टन अंशुमान ने सराहनीय भूमिका अदा की। उन्होनें अपने तीन साथियों को तो सुरक्षित बाहर निकाल लिया, लेकिन इस भीषण आग की लपटो में खुद झुलस कर रह गए और इलाज के दौरान वो शहीद हो गए।
उनकी इस वीरता को देखते हुए भारत सरकार ने अभी हाल ही में उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया। जिसमें यह सम्मान उनके माता पिता की जगह पत्नी को मिला, जो एक विवाद का कारण बन गया।
अंशुमान सिंह के माता-पिता का झलका दर्द
शहीद अंशुमान सिंह के पिता ने बताया कि उनकी बहू स्मृति अंशुमान की फोटो एल्बम, कपड़े के साथ कई यादगार चीजो के साथ सरकार के द्वारा दिए गए कीर्ति चक्र को लेकर अपने मायके चली गई है। इतना ही नही बहू ने शहीद बेटे का मेडल लेने के साथ दस्तावेजों में दर्ज स्थायी पते को भी बदलवाकर अपने घर गुरदासपुर का पता करवा दिया है।
अंशुमान के पिता चाहते हैं NOK नियमों में बदलाव
शहीद अंशुमान के पिता रवि प्रताप सिंह का कहना है कि, ‘ NOK नियमों के मुताबिक शहीद के अदम्य साहस के लिए मिलने वाले कीर्ति चक्र के लिए मां और पत्नी दोनों को यह सम्मान लेने के लिए बुलाया जाता हैं। जिसमें अंशुमान की मां भी साथ गई थीं। लेकिन राष्ट्रपति के द्वारा मिला मेरे बेटे की शहादत का कीर्ति चक्र हमें छूनें तक नही मिला।’
कैप्टन अंशुमान के पिता चाहते है कि एनओके(Next of Kin) यानि ‘निकटतम परिजन’ का जो नियम है उसमें बदलाव चाहते हैं, क्योंकि उनकी बहू स्मृति सिंह अब उनके साथ नहीं रहती है। उन्होंने कहा कि एनओके का जो निर्धारित मापदंड है वह ठीक नहीं है। इसे लेकर उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से तक बात की है। बता दें कि केएनओके के नियमों में बदलाव को लेकर केवल कैप्टन अंशुमान के पिताही नही है इसके पहले भी कई शहीद परिजनों ने भी इन नियमों में बदलाव करने की मांग की हैं।
NOK नियम क्या हैं?
NOK (Next of Kin) का अर्थ व्यक्ति के जीवनसाथी, निकटतम रिश्तेदार, परिवार के किसी बी सदस्य को NOK के रूप में नामांकित करना होता है। जिसके बाद उन्ही को अनुग्रह राशि दी जाती है। जिसमें सिपाही इसमें नाम दर्ज कराता है।