क्या वायनाड भूस्खलन की भीषण तबाही के पीछे मानवजनित कारण हैं?
तारीख़ 30 जुलाई का दिन केरल के वायनाड ज़िले के मुंडक्कई गांव के लिए एक काले दिन के रूप में याद किया जाएगा। इस दिन, गांव ने एक भयावह आपदा का सामना किया जिसने सभी को हिला कर रख दिया। घटना की शुरुआत तब हुई जब सेल्समैन अजय घोष ने एक बहुत तेज़ और भयानक आवाज़ सुनी, जिसने उसे बेचैनी और डर से भर दिया।
अजय घोष एक स्थानीय दुकानदार थे और उनका काम गांव के विभिन्न हिस्सों में सामान की बिक्री करना था। उस दिन, जब वे अपने काम में व्यस्त थे, अचानक उन्होंने एक गर्जन भरी आवाज़ सुनी, जो पहाड़ों की ओर से आ रही थी। आवाज़ इतनी जोरदार थी कि अजय का दिल धड़कने लगा और उन्होंने फौरन समझ लिया कि कुछ बड़ा और गंभीर होने वाला है।
अजय ने जल्दी से गांववालों को चेतावनी दी कि वे सावधान रहें और सुरक्षित स्थानों की ओर चले जाएं। लेकिन, अजय के कहने से पहले ही, जमीन की फटी हुई दरारें और मलबा तेजी से उनकी ओर बढ़ रहे थे। मुंडक्कई में, तेज़ बारिश और अत्यधिक नमी के कारण पहले से ही मिट्टी में कमजोरी आ गई थी। इस स्थिति ने भूस्खलन को और भी भयानक बना दिया।
भूस्खलन की तबाही ने पूरे गांव को निगल लिया। मिट्टी, पत्थर, और मलबा अचानक लुढ़कते हुए गांव में आ गया, जिससे कई घर और भवन पूरी तरह से ढह गए। कुछ घरों में लोग फंसे हुए थे, और बहुत से लोग बचाव के प्रयासों में जुट गए थे। गांव की गलियों में मलबा बिखरा पड़ा था और जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था।
सेल्समैन अजय घोष ने खुद भी हालात को संभालने में अपनी पूरी कोशिश की। उन्होंने बचाव कार्यों में मदद की और प्रभावित लोगों को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान की। अजय की सतर्कता और त्वरित प्रतिक्रिया ने कई लोगों की जान बचाई, लेकिन भूस्खलन की घातक ताकत के आगे सभी प्रयास पर्याप्त नहीं थे।
वायनाड के इस भयानक भूस्खलन ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि प्राकृतिक आपदाएं कितनी भीषण हो सकती हैं और इनसे निपटने के लिए हमें सतर्क और तैयार रहना चाहिए। इस घटना के बाद, राहत और पुनर्वास कार्य तेजी से शुरू हुए, और प्रभावित लोगों को राहत पहुँचाने के प्रयास किए गए।
अजय घोष और अन्य स्थानीय लोगों ने मिलकर कठिन समय में एक-दूसरे की मदद की और यह दिखाया कि संकट के समय में मानवता और सहयोग कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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