आजादी मिलने के बाद भी इस धरती पर है अंग्रेजों का कब्जा, देना पड़ता है करोड़ों का लगान 1

नई दिल्ली। India only private railway line: अग्रेजों से भारत को आजादी मिले 78 साल बीत चुके है। अब अपने देश में लोग स्वतत्र रूप से रह रहे है। लेकिन अजादी मिलने के बाद भी एक जगह ऐसी है जहां अग्रेजों का कब्जा आज भी है। और उस जगह का उपयोग करने के चलते हमें उसा लगान आज भी करोड़ों रूपए देना पड़ता है।

भारत की इस धरती पर एक रेलवे ट्रैक ऐसा भी है, जिसपर ब्रिटिश कंपनी का मालिकाना हक है। इस रेलवे ट्रैक पर ब्रिटिश कंपनी का कब्जा है। और इस रेलवे लाइन का उपयोग करने पर भारतीय लेल्वे को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती हैं, इस रेलवे ट्रैक के लिए भारतीय रेलवे को रॉयल्टी देने पड़ती थी।

ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन एंड कंपनी जिसकी भारतीय इकाई, सेंट्रल प्रोविजंस रेलवे कंपनी है। इस रेलवे लाइन का निर्माण अंग्रेजों ने किया था, लेकिन आजादी के बाद जब अंग्रेजों ने भारत को छोड़ा तो इसके बाद भी इस रेलवे ट्रैक पर उनका अधिकार सालों तक बना रहा.

शकुंलता रेलवे की दिलचस्प कहानी…

ब्रिटेन केद्वारा संचालित की जाने वाली इस रेल ट्रैक का नाम शकुंतला एक्सप्रेस पैसेंजर ट्रेन है, जिसकी वजह से इस ट्रैक को शकुंतला रेल ट्रैक कहते हैं। महाराष्ट्र के अमरावती से मुर्तजापुर के 190 किलोमीटर की दूरी को यह ट्रेन 20 घंटे में पूरा करती थी। सफर के दौरान शकुंतला के बीच 17 छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती थी, जिसकी वजह से समय अधिक लगता था।  70 सालों तक यह ट्रेन स्टीम इंजन के साथ चलती रही, जिसे साल1921 में ब्रिटेन के मैनचेस्टर में बनाया गया था।  साल 1994 में इसमें डीजल इंजन में तब्दील कर दिया गया। इस रेलवे ट्रैक में लगे सिग्नल आज भी ब्रिटिश काल के है।

अमरावती के लोगों की जीवनलाइन बनी इस शकुंतला रेल पर भले ही ब्रिटिश कंपनी का मालिकाना हक था, इसके देख-रेख की पूरी जिम्मेदारी भी उसपर ही थी, लेकिन लंबे समय से चल रही इस ट्रेन की हालत काफी जर्जर हो चुकी थी  जिसपर सफऱ करना लोगों के लिए बड़ा खतरा भी साबित होता। जिसके चलते इस ट्रैक पर ट्रेनों को न चलाने का फैसला किया गया। इस ट्रैक पर चलने वाली शकुंतला एक्सप्रेस को पहली बार साल 2014 में और दूसरी बार अप्रैल 2016 में बंद किया।  आखिरी बार यह ट्रेनको साल 2020 में पटरी पर दौड़ाने के बाद बंद कर दिया। लेकिन लोग इसे फिर से चलाने की मांग कर रहे है।


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