नई दिल्ली।पुराने समय से एक कहावत चली आ रही है कि घरों में लड़ाई का सबसे बड़ा कारण जर, जोरू, और जमीन होता है। और यही तीनों चीजों के चलते हुआ दुनिया का सबसे बड़ा युद्ध महाभारत, जिसमें अपने ही अपनों के खून की नदियां बहाते नजर आए थे। उस युद्ध का सबसे अहम पात्र दुर्योधन था जिसकी जिद और माता-पिता के प्यार के चलते यह युद्ध दो भाइयों के बीच हुआ था। लेकिन इस युद्ध में ऐसा क्या हुआ था कि दुर्योधन ने मरने के अंत में श्री कृष्ण को अपनी तीन उंगलियों से कुछ संकेत दिए थे। जिसके बारे में शायद ही आप जानते होगें, आइये जानते हैं इसके बारे में..
महाभारत का युद्ध दो भाइयों के बीच होने वाला ऐसा युद्ध था जिसमें अपने ही अपनों के खून के प्यासे थे। यह युद्ध धर्म अधर्म के बीच हुआ था। धर्म का साथ देने के भगवान श्रीकृष्ण पाडंव के हिस्से में आए, तो वही दूसरी और अधर्म के लिए खड़े कौरव का साथ देने नारायणी सेना आई। दुर्योधन ने अपने भाइयों के साथ जितनी अधर्म से जुड़ी कूटनीति रची, उसका अंत भी उतना खतरनाक हुआ। दुर्योधन का अंत भीम ने उसके जांघ पर प्रहार करके किया था। तब मरते-मरते दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को अपनी तीन उंगलियां दिखाकर कुछ सकेंत दिए थे।
पहली गलती नरायणी सेना को चुनना
जिसमें पहला संकेत यह था कि यदि इस युद्ध में मैं नरायणी सेना का जगह आपको चुनता तो यह यद्ध मै जीत जाता। ऐसा अंत ना होता।
दूसरी गलती: पत्तों की छाल पहनना
दुर्योधन की दूसरी गलती उस समय हुई जब मां गांधारी अपनी आंखों की पट्टी खोलकर अपना सारा तेज बांधे बेटे दुर्योधन को देना चाहती थी जिसके लिए उन्होने बेटे दुर्योधन को अपने सामने निर्वस्त्र होकर आने को कहा था, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें आसी करने से मना कर दिया और दुर्योधन को पत्तों की छाल पहनकर जाने को कहा। इसका परिणाम यह हुआ कि गांधारी की दृष्टि का तेज दुर्योधन के उन जगहों पर पड़ा जो खुला हुआ था वह वज्र के समान हो गया लेकिन जांघों में पत्ता ढका रहने के कारण वो समान्य रहा और यही दुर्योधन की मौत का कारण बना।
तीसरी गलती अंत में आना
दुर्योधन की तीसरी सबसे बड़ी गलती इस युद्ध में उनका सबसे अंत मे आना था। अगर वह शुरू से ही युद्ध की कमान संभाल लेते तो उन्हें हार का सामना नही करना पड़ता। लेकिन श्रीकृष्ण ने कहा- तुम्हारी हार का सबसे बड़ा कारण तुम्हारा पाप और अहंकार था, न कि ये तीन गलतियां।