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इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर कपिल विनोद टोप्पो ने रांची में खोला झारखंडी व्यंजनों का कैफे

Ranchi News|रांची, प्रवीण मुंडा : इस साल गर्मियों के मौसम में जब सचिन तेंदुलकर एक कार्यक्रम के सिलसिले में रांची आये थे, तब उन्हें पहली बार झारखंड की आदिवासी खाद्य संस्कृति से रू-ब-रू होने का मौका मिला था. सचिन ने तब पत्तों के प्लेट में छिलका रोटी और डुंबू जैसे व्यंजनों का लुत्फ उठाया था.

सचिन तेंडुलकर और अंजली ने लिया मंडी एड़पा के व्यंजन का आनंद

सचिन और उनकी पत्नी अंजली को इन व्यंजनों का स्वाद काफी भाया था. तब ये व्यंजन आये थे ‘मंडी एड़पा’ से. मंडी एड़पा पारंपरिक झारखंडी व्यंजनों का एक नया स्टार्टअप है, पर यह नाम स्वाद के शौकीनों की जुबां पर तेजी से लोकप्रिय हो रहा है.

संत जेवियर्स और जमशेदपुर एनआइटी से की पढ़ाई

राजधानी रांची के करमटोली स्थित मंडी एड़पा और इसके एक अन्य विंग ‘कैफे डी आर्टे’ के संचालक हैं कपिल विनोद टोप्पो. संत जेवियर्स कॉलेज से प्लस टू करने के बाद कपिल ने जमशेदपुर एनआइटी से बीटेक किया. ‘प्रदान’ में एक साल तक काम किया. फिर मारुति सुजुकी के एक ज्वाइंट वेंचर में नौकरी की.

फ्लिपकार्ट और सिएट टायर में विनोद टोप्पो ने की नौकरी

फिर फ्लिपकार्ट और उसके बाद सिएट टायर में काम किया. कुछ समय दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप में गुजारा. कई नौकरियां करने और छोड़ने के बाद इस स्टार्टअप की शुरुआत की. कपिल कहते हैं मुझे खाना बनाना और खाना दोनों अच्छा लगता है, इसलिए इस काम को चुना.

मंडी एड़पा के मेन्यू में हैं केवल झारखंडी व्यंजन

अभी बरसात का मौसम है, तो इनके यहां आप रुगड़ा और खुखड़ी के व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं. इसके अलावा छिलका रोटी, दाल पीठा, मड़ुआ पीठा, डुंबू, ब्राउन राइस की बिरयानी, देशी चिकन, क्रैब, घूंघी, पत्तल चिकन, सुड़ी भात, मड़ुआ मोमो जैसे डिश उपलब्ध हैं. कुछ यूनिक टेस्ट करना है तो ‘डेमता’ लाल चींटी की चटनी भी ट्राई कर सकते हैं.

अपने व्यंजनों में कई प्रयोग भी किये

विनोद ने झारखंड के पारंपरिक व्यंजनों को आज के दौर के व्यंजनों के तरीके से बनाने और परोसने का तरीका ईजाद किया है. इनके यहां काम करनेवालों में 80 प्रतिशत महिलाएं हैं. और इनका मंत्र है झारखंडी फूड को नये कलेवर में पेश करना वह भी हाइजीन के साथ. काम में क्या चुनौतियां रहीं? इस सवाल पर कहते हैं- वहीं, जो आमतौर पर किसी भी नये स्टार्टअप के साथ होती हैं. लोगों के बीच स्वीकार्यता का. घरवालों के विरोध का. पर अब ये अतीत की बातें हो चली हैं.

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